सर्पदंश से मौतों का फर्जी आंकड़ा पेश कर मुआवजा राशि हड़पने के मामले में डाक्टर ,वकील नप गए लेकिन चौकी प्रभारी काजल की कोठरी से बेदाग कैसे बच गए?
बिलासपुर। वैसे तो शहर और आसपास के थानों में पदस्थ टी आई,सब इंस्पेक्टर ,हवलदार और सिपाहियों का शिकायतों अथवा प्रशासनिक दृष्टिकोण से साल छै महीने के भीतर अन्य थानों में तबादला हो ही जाता है और कई वर्षों तक एक ही थाने या चौकी में पदस्थ रहने का किसी भी सब इंस्पेक्टर, हवलदार और सिपाही का शायद ही कोई उदाहरण हो लेकिन सिम्स अस्पताल के पुलिस चौकी में पदस्थ सब इंस्पेक्टर का जलवा ऐसा है कि उसका तीन साल में अन्यत्र तबादला नहीं हो पाया । ऐसा नहीं है कि उनका तबादला आदेश नहीं निकला । तबादला हुआ लेकिन चौकी प्रभारी का प्रभाव ऐसा कि आदेश निरस्त होने में ज्यादा समय नहीं लगा ।
सिम्स अस्पताल के पुलिस चौकी में कानून व्यवस्था पर ध्यान देने जैसा कोई जिम्मेदारी नहीं है बल्कि मेडिको लीगल मामलों पर ,बयान , जांच और मृतकों के परिजनों के बयान दर्ज कर उन्हें राहत पहुंचना प्रमुख कार्य है। सिम्स चौकी से कितने पीड़ित परिवारों को वास्तव में मदद मिली यह तो जांच का विषय है लेकिन यह कटु सत्य है कि जो प्रभारी ज्यादा दिनों तक चौकी में ही बने रहना चाहता हो तो इसके पीछे निश्चित तौर पर निजी स्वार्थ निहितार्थ रहता है । यह भी होता है कि ज्यादा समय तक पदस्थ रहने वाले के खिलाफ शिकायतें शुरू हो जाती है।
सिम्स अस्पताल में सांप काटने से सर्वाधिक लोगों की मौत होने का मामला बेलतरा विधायक सुशांत शुक्ला ने विधानसभा में उठाते हुए कहा था कि सांपों से मरने वालों की इतनी संख्या तो नागलोक कहे जाने वाले तपकरा में भी नहीं होती। पता चला कि वकील समेत कई ऐसे लोगों का गिरोह था जो सामान्य मौत को सर्प दंश से होना बता और सुनियोजित ढंग से पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सर्प दंश से मौत बता शासन से मिलने वाले मुआवजा राशि की बंदरबाट होती रही । बड़ा प्रश्न यह है कि सरकार को धोखा देकर फर्जी रिपोर्ट से मुआवजा लेने वालों के धत कर्म की जानकारी सिम्स चौकी प्रभारी को कैसे नहीं रहा होगा? चौकी प्रभारी के खिलाफ कोई भी कार्रवाई न होना यह बताता है कि पुलिस अधिकारियों की नजर में चौकी प्रभारी बेदाग है जबकि गिरोह के गोरखधंधे की जानकारी चौकी पर प्रभारी को न हो ऐसा कैसे हो सकता है।
सिम्स के प्रभारी एस आई सोनवानी पर यह आरोप लगता रहा है कि वे मृत परिजनों को परेशान कर लाभ पाने की दृष्टि से बताये अनुसार कथन ना लेकर अपने मन मुताबिक कथन को तोड़-मरोड़ कर अपने वकील को भेजकर परिजनों से केस की बारगेनिंग और सेटिंग करते हैं । केश को वैसा बनाया जाता ताकि परिजनों को मुआवजा मिले और सबको फायदा मिल सके और यह खेल चलता रहे ।मृतक के परिजनों से दुर्व्यवहार की भी शिकायतें मिलती रही है। मृतक के परिजन पहले से ही दुखी रहते उसके बाद भी अस्पताल में घूम रहे दलाल लुटने में कोई कसर नही छोडते इससे आम परिजनों मे गुस्सा व्याप्त है। सर्पदंश के मामले तो एक वकील और डाक्टर को तथाकथित लेकिन सक्रिय दलाल लोग ले डुबे है। सिम्स चौकी के बारे शिकायतों की जांच तो होनी ही चाहिए उसके पहले योग्य और प्रभावशाली चौकी प्रभारी को वहां से हटाकर किसी थाने में भेज देना चाहिए । शिकायतें तो बाद का विषय है और हर शिकायत जरूरी नहीं कि सच हो लेकिन किसी एक चौकी में 3 साल से बने रहना अन्यत्र तबादला का आधार तो बनता है। सर्पदंश के फर्जी आंकड़े आज भी निष्पक्ष जांच पर सवाल खड़े हो रहे हैं कि डॉक्टर, और वकील बिना पुलिस अधिकारी के मिली भगत के ऐसे मामलों को कैसे अंजाम तक पहुंचा सकते हैं ?

