व्यापार से राजनीति में आने धार्मिक कार्यक्रमों का सहारा ,बड़े संत महात्माओं,साध्वियों को शहर में बुलाकर की जा रही सिफारिश की राजनीति

बिलासपुर। छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री रहे अजीत जोगी ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में बिलासपुर में संभागीय चैंबर ऑफ कॉमर्स द्वारा आयोजित सम्मान समारोह में एक पदाधिकारी को सार्वजनिक रूप से कहा था कि राजनीति और व्यापार एक साथ नहीं चलता इसलिए आप या तो व्यापार ही कर लीजिए या फिर राजनीति करिए । श्री जोगी का यह कथन उन लोगों के लिए चिंतन का विषय है जो राजनीति को व्यापार बना लिए है और व्यापार के जरिए राजनीति में आने तमाम प्रकार कोशिश करते हुए खर्च भी करते है। 

बिलासपुर में भी कुछ लोग व्यापार के सहारे राजनीति में प्रवेश करने की भरपूर कोशिश कर रहे है । विधायक,महापौर की टिकट पाने ऐसे कई व्यापारी सत्तारूढ़ दल के बड़े नेताओं के माध्यम से जी तोड़ कोशिश की । टिकट पाने खर्च भी किए होंगे इसमें शक की कोई गुंजाइश नहीं बनती लेकिन सफलता नहीं मिली । एक व्यापारी तो थक हार कर अपने व्यावसायिक संघ का प्रदेश अध्यक्ष बन गया। उसके बाद भी रणनीति करने से मन नहीं भरा तो उसने दूसरा तरीका अपनाया । सत्तारूढ़ दल से संबद्ध धार्मिक नेताओं,साधु संन्यासियों ,विचारक के शरण में जाकर उन्हें शहर में आयोजित कार्यक्रमों में बतौर मुख्य अतिथि बनाकर आमंत्रित किया। शायद इस व्यापारी को धर्म के रास्ते होकर राजनीति में कुछ पद पाने की लालसा हो चली है। जिस व्यापारिक एसोशिएशन के ये अध्यक्ष है उस एसोशिएशन और उसके सदस्यों का काम अब व्यापार कम धार्मिक आयोजन,व्याख्यान कराना ज्यादा जरूरी हो गया है। 

ऐसे ही अरपा पार के पेशे से एक चिकित्सक को विधायक बनने की तीव्र आकांक्षा हो चली थी जिसके लिए उन्होंने संघ परिवार के कई बड़े पदाधिकारियों से संपर्क कर टिकट के लिए कोशिश की,दौड़धुप भी किया,संघ के कार्यक्रमों का आयोजक भी बने मगर टिकट पाने में सफल नहीं हो पाए। 

राजनीति में आना कोई बुरी बात नहीं है । नेता बनने का ख्वाब पालना भी अच्छी बात है लेकिन सोद्देश्य राजनीति में आने की मंशा सबकी सफल हो जाए ऐसा नहीं है । वक्त से पहले और किस्मत से ज्यादा किसी को नहीं मिलता यह कटु सत्य राजनीति में भी लागू होता है। इस कटु सत्य से बिलासपुर का यह व्यापारी वाकिफ है कि नहीं यह तो पता नहीं लेकिन धार्मिक आयोजनों की बैसाखी से सक्रिय राजनीति में प्रवेश करने की उनकी तमन्ना पूरी होती भी है या नहीं यह आने वाला वक्त ही बताएगा लेकिन उनको राजनीति में जाने के लिए चने की झाड़ पर चढ़ाने और अपना उल्लू सीधा करने वालों की संख्या भी कम नहीं है।

निर्मल माणिक/ प्रधान संपादक ,मोबाइल:- 9827167176

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