साहित्य के केंद्र में संवेदना जरूरी : डा.सक्सेना / प्रगतिशील लेखक संघ की 90 वीं वर्षगांठ पर संगोष्ठी आयोजित

●साहित्य सदैव समाज सापेक्ष होता है

बिलासपुर। साहित्य के केंद्र में सदा ही संवेदना जरुरी होती है। साहित्य सौंदर्य शास्त्र का विषय है। साहित्य सदैव समाज सापेक्ष होता है। महान कथाकार प्रेमचंद ने साहित्य में नायकत्व की अवधारणा को बदल दिया, और सामाजिकता को केंद्र में ले आए यही प्रगतिशील लेखन है।*

प्रसिद्ध चिंतक राजेश्वर सक्सेना ने एक गोष्ठी में उक्त विचार व्यक्त किए। प्रगतिशील लेखक संघ की स्थापना के 90 वें वर्ष पर यह आयोजन छत्तीसगढ़ प्रलेस की बिलासपुर इकाई द्वारा किया गया।90वें वर्ष की शुरुआत के अवसर पर”प्रगतिशील साहित्य-सफ़र:उपलब्धियां और चुनौतियां” विषय पर यह गोष्ठी हुई। आज की इस विचार गोष्ठी में श्री सक्सेना ने प्रगतिशील लेखक संघ की स्थापना के समय की राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितयों का उल्लेख करते हुए विस्तार से बताया कि महान साहित्यकार प्रेमचंद ने साहित्य में भावना और कल्पना के साथ वैचारिक संवेदना को स्थान दिया।

उन्होंने साहित्य में नायकत्व की अवधारणा को बदल दिया। तिलस्मी और जासूसी विषय वस्तु के स्थान पर सामाजिकता को वे केंद्र में ले आए। प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानी ईदगाह का उदाहरण देते हुए डॉ सक्सेना ने कहा कि भौतिक विचारों को संवेदनशीलता के साथ अभिव्यक्त करना प्रगतिशील साहित्य की अन्यतम विशेषता रही है।

समकालीन वैश्विक परिदृश्य का विस्तार से विश्लेषण करते हुए श्री सक्सेना ने बताया कि आज यूरोप के हालात अच्छे नहीं है। एक तरह से सामाजिक संकट से यूरोप जूझ रहा है। साहित्य के सौंदर्यशास्त्रीय मानदँडों की विषद व्याख्या करते हुए डॉ सक्सेना ने कहा कि साहित्य सौंदर्यशास्त्र का विषय है।विचार की भौतिकता के साथ ही साहित्य के केंद्र में संवेदना की प्रमुखता बनती है। साहित्य सदैव समाज सापेक्ष होता है। आज सामाजिक संबंधों का अवमूल्यन हो रहा है। विचार जो हमें संवेदनशील बनाता है उसका निषेध हो रहा है। जीवन का विसंगतिकरण और हास्यास्पदीकरण हो रहा है। इतिहास की भूमिका को सीमित किया जा रहा है। जीवन की गति को सौंदर्य शास्त्र के केंद्र में रखकर ही साहित्य की रचना हो सकती है। उन्होंने कहा कि आज की परिस्थितियों में पूरी वस्तुनिष्ठता और प्रतिबद्धता के साथ जीवन के यथार्थ को रचे जाने की आवश्यकता है।

गोष्ठी के प्रारम्भ में रफ़ीक खान ने गोष्ठी की विषय वस्तु की रुपरेखा प्रस्तुत करते हुए प्रेमचंद के ऐतिहासिक भाषण के प्रमुख बिंदुओं का उल्लेख किया। गोष्ठी में नथमल शर्मा ने अपने विचार व्यक्त करते हुए आज की परिस्थितियों में लेखन और साहित्य की चुनौतियों का जिक्र किया। इस दौर में साहित्य के जरिए किस तरह बदलाव किया जाना चाहिए ताकि जीवन मूल्यों को बचाया जा सके। साथ ही नंदकुमार कश्यप ने मानव जाति के विकास की ऐतिहासिकता का उल्लेख करते हुए आज के साहित्य की विवेचना की।

अंत में प्रश्नोत्तर सत्र हुआ जिसमें हबीब खान, लखन सिंह, मधुकर गोरख आदि ने भी महत्वपूर्ण प्रश्न उठाए जिनके सुसंगत उत्तर मुख्य वक्ता डॉ सक्सेना ने दिए।

इस अवसर पर डॉ सत्यभामा अवस्थी,जितेन्द्र पांडे, धर्मेंद्र निर्मलकर, लखन सिंह आदि की उपस्थिति उल्लेखनीय रही। डॉ अशोक शिरोड़े ने आभार व्यक्त करते हुए बताया कि शीघ्र ही डॉ सक्सेना के साथ एक और विचार गोष्ठी करेंगे जिसमें अन्य सवालों पर विमर्श होगा। अंत में प्रलेस कोरबा के अध्यक्ष सुरेश चंद्र रोहरा के आकस्मिक निधन पर दो मिनट का मौन रखकर श्रद्धांजलि दी गई।

निर्मल माणिक/ प्रधान संपादक ,मोबाइल:- 9827167176

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