बीजापुर में कमल की पंखुड़ियों में गुटबाजी के कांटे ,नए लोगों को सिर आंखों पर उठाने से पुराने हो गए महत्वहीन ,ये मोदी, शाह की भाजपा है ,कमल में नई पंखुड़ियां उगा रहे

 

महिला मोर्चा  को ढाल बनाकर  सत्ता संघर्ष के अखाड़े में कर रहे दो दो हाथ

वरिष्ठों को किनारे लगाओ और नए चेहरों को सामने लाओ की रणनीति पर काम हो रहा


बीजापुर। बीजापुर विधानसभा में भले ही चुनाव अभी दूर हों, लेकिन भारतीय जनता पार्टी में अभी से राजनीतिक रिहर्सल पूरे शबाब पर है। फर्क सिर्फ इतना है कि यहां मुकाबला कांग्रेस से नहीं, बल्कि अपनों के बीच लड़ा जा रहा है। कमल की पंखुड़ियों में अब गुटबाज़ी के कांटे उग आए हैं। वरिष्ठ नेत्री उर्मिला तोकल को नजरअंदाज कर अपेक्षाकृत कांग्रेस से बीजेपी में शामिल हुई नई कार्यकर्ता माया झाड़ी को महिला मोर्चा की जिला अध्यक्ष बनाए जाने से पार्टी के भीतर सुगबुगाहट नहीं, बल्कि सियासी खलबली मच गई है। जिन नेताओं ने वर्षों तक जंगल, गोलियों और लाल आतंक के साए में संगठन को सींचा था वे आज हाशिये पर खड़े दिख रहे हैं। मोदी शाह की नई भाजपा का असर यहां भी दिख रहा है।

बीजापुर भाजपा में इस समय त्रिकोणीय राजनीति पूरे उफान पर है,एक ओर पूर्व मंत्री महेश गागड़ा,दूसरी ओर सांसद महेश कश्यप और तीसरी धुरी पर प्रदेश भाजपा उपाध्यक्ष वेंकट गुज्जा है और ये तीनों नेता अपने-अपने झंडे गाड़ने में जुटे हैं, लेकिन पार्टी में चल वही रहा है जिसकी हवा ऊपर तक बह रही है। बाकी दो गुटों में बेचैनी ऐसी है मानो कुर्सी खिसकते ही जमीन भी खिसक गई हो,इस सियासी तमाशे से जिले के प्रभारी नेता एवं वन मंत्री केदार कश्यप ने खुद को अलग-थलग कर लिया है, शायद इसलिए कि जब घर में ही आग लगी हो तो बाहर से पानी डालना बेहतर समझा जाता है।

    सबसे दिलचस्प पहलू यह है कि उर्मिला तोकल, जो 1997 से भाजपा के लिए बासागुड़ा-लिंगागिरी जैसे नक्सल प्रभावित इलाकों में डटी रहीं, दो बार सरपंच, जनपद सदस्य, जनपद अध्यक्ष और महिला मोर्चा की जिला उपाध्यक्ष रह चुकी हैं—उनका नाम रास्ते में ही बदल दिया गया क्योंकि अब मोदी ,शाह की भाजपा का जादू पूरे प्रदेश में सिर चढ़कर बोल रहा है । सूची नीचे बनी, हस्ताक्षर वरिष्ठों के थे, लेकिन ऊपर पहुंचते-पहुंचते नाम किसी और का हो गया,पार्टी के जमीनी कार्यकर्ताओं के लिए यह फैसला किसी राजनीतिक झटके से कम नहीं है। पांच-छह साल पुरानी सदस्यता और अचानक मिली माया झाड़ी को बड़ी जिम्मेदारी ने यह सवाल खड़ा कर दिया है क्या संगठन में अनुभव अब बोझ बन गया है?अगर यही हाल रहा, तो आने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को प्रचार की जरूरत भी नहीं पड़ेगी, क्योंकि भाजपा खुद अपने लिए राह मुश्किल कर रही है।

क्षेत्र के भाजपा नेताओं के लिए बीजापुर विधानसभा सीट का हाथ से निकल जाना कोई बड़ा झटका नहीं दिखता। सत्ता में अपनी ही सरकार होने का भरोसा उन्हें इस कदर निश्चिंत किए हुए है कि विधानसभा की हार का कोई आत्ममंथन तक नहीं किया गया। उलटे, पंचायत चुनावों में मिली सीमित सफलता को ही बड़ी उपलब्धि बताकर खुद को संतुष्ट कर लिया गया है। सत्ता की सुरक्षा ने नेताओं को बेफिक्र बना दिया है, नतीजा यह है कि अब संगठन को मजबूत करने के बजाय पार्टी के भीतर गुटबाजी और आपसी राजनीति हावी होती जा रही है। जमीन से जुड़े मुद्दों और जनता की नाराज़गी को नजरअंदाज कर, भाजपा नेतृत्व की यह उदासीनता आने वाले समय में पार्टी के लिए और नुकसानदेह साबित हो सकती है।

निर्मल माणिक/ प्रधान संपादक मोबाइल:- / अशरफी लाल सोनी 9827167176

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