
बीजापुर। एक दशक पहले अभिनेता असरानी का एक बल्ब के विज्ञापन में “पूरे घर के बदल डालूंगा ” का डायलॉग काफी चर्चा में था ,आज भाजपा भी असरानी के उस डायलॉग का लगता है अनुसरण करते हुए उसी पैटर्न पर चल पड़ा है । पूरे देश में और छत्तीसगढ़ में भी मोदी ,शाह की भाजपा का जादू सिर चढ़ कर बोल रहा है । कांग्रेस समेत दूसरी पार्टी के नेताओं को भाजपा में शामिल करो और तमाम प्रकार के पद देकर उपकृत करो तथा भाजपा के पुराने लोगों को सिर्फ कार्यकर्ता बनाकर रखो । कहने को तो भाजपा अनुशासन और संगठन की पार्टी मानी जाती है, लेकिन बीजापुर जिले में भी इन दिनों पार्टी संगठन में बदलाव और उपकृत करने की नीति पर चल रही है। भाजपा महिला मोर्चा की नवनियुक्त अध्यक्ष माया झाड़ी के खिलाफ पार्टी के भीतर ही विरोध का बिगुल बज चुका है। मामला इतना आगे बढ़ गया है कि अब विरोध केवल कानाफूसी तक सीमित नहीं, बल्कि सामूहिक हस्ताक्षर अभियान के ज़रिए “तत्काल हटाओ” की मांग खुलकर की जा रही है। जिला भाजपा की कोर कमेटी की अनुशंसा भी किनारे लगा दी गई है । जिले के बड़े नेता यह कहकर कन्नी काट रहे है कि ऊपर लेबल पर लिया गया निर्णय हो सकता है पार्टी की मजबूती के लिहाज से लिया गया हो इसलिए हम भी पार्टी के निर्णय के खिलाफ नहीं जा सकते । पार्टी में स्थानीय स्तर पर कोई गुटबाजी नहीं है ।
दरअसल, इस पूरे घटनाक्रम की जड़ में वह सवाल है, जो अब हर भाजपा कार्यकर्ता की ज़ुबान पर है, महिला मोर्चा की जिला अध्यक्ष के लिए जब सामूहिक सहमति उर्मिला तोकल के नाम पर थी, तो आख़िर ऐन वक्त पर उसके नाम को क्यों बदला गया ?यह बदलाव किसके इशारे पर हुआ ?
भाजपा के जमीनी स्तर पर दिन-रात झंडा ढोने और कुर्सी , दरी बिछाने वाले कार्यकर्ता आज खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं। उनका आरोप साफ है “जिसकी ऊपर तक पकड़, उसी को बड़ा पद।”
वरिष्ठ भाजपा नेत्री उर्मिला तोकल को नज़रअंदाज़ किया जाना केवल एक नाम काटना नहीं, बल्कि उन सैकड़ों कार्यकर्ताओं की मेहनत पर प्रश्नचिह्न है, जो संगठन की जड़ें मजबूत करने में वर्षों से लगे हैं। यही उपेक्षा अब गुटबाजी के भंवर को और गहरा कर रही है। भाजपा के प्रमुख कार्यकर्ताओं का कहना है कि दो साल बीत गए छोटे छोटे काम भी नहीं हो रहे, सड़क ,बिजली पानी के काम अटके हुए है। कार्यकर्ताओं के काम नहीं हो रहे। कार्यकर्ता निराश है।
बीजापुर भाजपा में इस वक्त हालात ऐसे हैं मानो पार्टी नहीं, राजनीतिक अखाड़ा चल रहा हो।
एक ओर पूर्व मंत्री महेश गागड़ा, दूसरी ओर प्रदेश उपाध्यक्ष वेंकट गुज्जा, और सामने बस्तर सांसद महेश कश्यप,पार्टी का झंडा तो एक है लेकिन पार्टी तीन खेमे में बट चुका है। नक्सलियों से लड़कर कार्यकर्ताओं ने भाजपा के जनाधार में वृद्धि की उसका नतीजा कांग्रेस से आए नेताओं को सिर आंखों पर बिठाया जा रहा । जिला महिला मोर्चा अध्यक्ष पद को लेकर यह टकराव अब केवल बीजापुर तक सीमित रहने वाला नहीं दिखता। जानकारों का मानना है कि इसका असर बस्तर संभाग की 12 विधानसभा सीटों तक जाएगा और यह असर पार्टी के लिए घातक भी साबित हो सकता है। यक्ष प्रश्न यह है कि क्या संगठन में अब जमीनी कार्यकर्ता की कोई अहमियत नहीं? क्या नियुक्तियां अब मेहनत से नहीं, सिफारिश से तय होंगी? और सबसे बड़ा सवाल उर्मिला तोकल का नाम किसके कहने पर काटा गया? कोई न कोई तो होगा जिसकी सिफारिश पर फेरबदल किया गया ।
जब तक इन सवालों के जवाब नहीं मिलते, तब तक भाजपा महिला मोर्चा का यह विवाद सिर्फ एक पद की लड़ाई नहीं, बल्कि संगठन की दिशा और दशा पर सवाल बनकर खड़ा रहेगा क्योंकि बीजापुर में महिला मोर्चा की आड़ में भाजपा के तीन गुट आपस में लड़ रहे है।
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Mon Dec 29 , 2025
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