भूपेश बघेल के बालको द्वारा वन भूमि पर कब्जा करने वाले केस में सुप्रीम कोर्ट की सशक्त समिति ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की ,148 एकड़ वन भूमि पर बिना वन अनुमति के कार्य करने पर बालको को दोषी माना

छत्तीसगढ़ राज्य में राजस्व वन भूमि का प्रबंधन वन संरक्षण अधिनियम और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के अनुसार नहीं होने और आदेशों का उल्लंघन किए जाने पर कार्रवाई की सिफारिश

148 एकड़ वन भूमि पर बिना वन अनुमति के कार्य करने पर बालको को दोषी माना

सुप्रीम कोर्ट के स्टे के बावजूद 2008 से 2013 के बीच लगभग डेढ़ सौ एकड़ से अधिक भूमि पर पेड़ कटाई के लिए भी बालको जिम्मेदार

नई दिल्ली 18 मार्च सुप्रीम कोर्ट की केंद्रीय सशक्त समिति सी ई सी जिसने दिसंबर माह में बालकों का दौरा किया था आज भूपेश बघेल के द्वारा लगाए गए वन भूमि पर बेजा कब्जा और कोर्ट के आदेश की अवमानना वाले प्रकरणों में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की है। 127 पेज की रिपोर्ट और लगभग 5 000 पन्नों के दस्तावेज के साथ दी गई अपनी सिफारिशें में सी ई सी ने जहां बालकों को लगभग डेढ़ सौ एकड़ भूमि पर सुप्रीम कोर्ट के स्टे के बावजूद पेड़ कटाई का दोषी माना है वही छत्तीसगढ़ राज्य में राजस्व वन भूमि का प्रबंध वन संरक्षण अधिनियम और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के अनुसार न होने की फाइंडिंग देकर इस पर कार्यवाही की सिफारिश की है। समिति ने बालकों को 148 एकड़ वन भूमि का विधिवत वन अनुमति लेने और वैकल्पिक वृक्षारोपण आदि की राशि जमा करने के सिफारिश भी की है।

गौर तलब है कि 2005 से ही बालकों के द्वारा वन भूमि पर बेजा कब्जा कर विभिन्न निर्माण करने के आरोप लगाते रहे हैं। 2008 फरवरी में भूपेश बघेल और सार्थक संस्था के याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने बालकों के कब्जे वाले क्षेत्र में पेड़ कटाई पर रोक लगा दी थी। परंतु बाद में उसे क्षेत्र में पावर प्लांट निर्माण के लिए बड़ी संख्या में पेड़ कटाई के आरोप लगे और इसी बीच पावर प्लांट की निर्माणाधीन चिमनी गिर जाने से लगभग 42 मजदूर असमय मारे गए थे। इस घटना के बाद भूपेश बघेल ने सुप्रीम कोर्ट में अवमानना याचिका प्रस्तुत कर बालकों के मालिक अनिल अग्रवाल समेत अन्य लोगों को प्रतिवादी बनाया था। 2018 में भी फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया की टीम ने बालकों का दौरा किया था और सैटेलाइट चित्रों के माध्यम से 97 एकड़ वन भूमि एवं 50 एकड़ के लगभग अन्य भूमि पर सुप्रीम कोर्ट के स्टे के बाद पेड़ कटाई किए जाने कि आरोपी को सही पाया था।

इस रिपोर्ट पर बालकों के द्वारा अपनी आपत्ति दर्ज की गई थी और पुनः एक बार सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय सशक्त समिति को जांच के निर्देश दिए जो दिसंबर के माह में बालको आईथी। केंद्रीय सशक्त समिति ने बालकों के संबंध में जो सिफारिशें दी है उसके अलावा उसका यह सिफारिश देना कि छत्तीसगढ़ राज्य में राजस्व वन भूमि का प्रबंधन वन संरक्षण अधिनियम और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के अनुसार नहीं हो रहा है राज्य के लिए एक नई परेशानी पैदा कर सकता है। गौरतलब है कि छोटे-बड़े झाड़ के जंगल पर कब्जा करके या उसका अवैध नामांतरण आदि कर कर कई शहरों में इसके व्यावसायिक उपयोग और कई उद्योगों में बिना अनुमति इनका उपयोग किए जाने की शिकायतें लगातार मिलती रहीहै। यदि सुप्रीम कोर्ट अपनी समिति की इस सिफारिश को स्वीकार कर कोई नई जांच शुरू करता है तो राज्य के राजस्व और वन विभाग दोनों के अधिकारियों पर बड़ी समस्या आएगी।

निर्मल माणिक/ प्रधान संपादक ,मोबाइल:- 9827167176

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