*संत गुरु घासीदास बाबा जी— सतनाम पंथ के नक्षत्र–*

(18 दिसम्बर के लिए विशेष लेख)

भारतीय संत परंपरा के तत्वावधान में हमारे संतों ने बाहरी आडम्बरों , जाति- पाँति धार्मिक कट्टरता को शिथिल करते हुए समाज में प्रेम और सामजिक सद्भाव जैसी महत्वपूर्ण बातों पर जोर दिया | ऐसी ही संत परम्परा में कबीर, नानक, मीरा बाई, नामदेव, रविदास, सूरदास, आदि का नाम हम श्रद्धा और आदर से लेते हैं | उन्होंने अपनी वाणी के द्वारा लोगों में चेतना जाग्रत किया | जो कि भक्ति का मार्ग अपनाकर सामाजिक एकता कायम रख सके | ऐसी ही हमारे छत्तीसगढ़ में एक महान संत हुए जो संत गुरु घासीदास के नाम से जाने जाते हैं |

ईश्वर ने हमें मानव जीवन दिया है। यह हमारे ऊपर निर्भर करता है कि हम अपना जीवन किस तरह जीना चाहते हैं। समय कोई भी हो, कितने ही युग बीत जायें मगर जिन्हें महान कार्य करना हो, समाज के उद्धार के लिए, दीन-दुखियों की सेवा के लिए, वे बाधाओें की परवाह किये बिना सदकार्य में लग जाते है। उन्हें उनके पथ से कोई डिगा नहीं सकता। ऐसे ही महान युग प्रवर्तक, समाज सेवक, निस्वार्थ, निष्काम सेवा भावी संत थे छत्तीसगढ़ के ग्राम गिरौदपुरी में जन्मे सतगुरु बाबा घासीदास।

जिस वक्त गुरुजी का आविर्भाव हुआ था तब छत्तीसगढ़ शिक्षा के क्षेत्र में एकदम पिछड़ा क्षेत्र था। केवल उच्च वर्ग के, धनाड्य , सम्पन्न घरों के बच्चे ही विद्याध्ययन कर पाते थे। क्योंकि तब शिक्षा को जरूरी नहीं समझा जाता था। जरूरी था तो बस इतना ही कि विद्यार्थी अक्षर ज्ञान प्राप्त कर ले। सो किसान वर्ग, श्रमिक वर्ग, हरिजन, आदिवासियों ने शिक्षा के प्रति ध्यान ही नहीं दिया। वैसे भी तब के जमींदार, मालगुजार या ब्राम्हण वर्ग नहीं चाहते थे कि निम्न वर्ग के बच्चे उनके बच्चों के साथ बैठकर विद्याध्ययन करें। तब उन्हें अछूत समझा जाता था। यही कारण है कि उनका बौद्धिक स्तर कम ही रहा। जनता दलित, पीड़ित और शोषित थी। अपने लोगों की इस दशा में गुरु घासीदास का हृदय द्रवीभूत हो गया था। उनका मन दलितों के उद्धार की ओर अग्रसर होने लगा। परिणाम स्वरूप उन्होंने ‘‘सतनाम पंथ’’ की स्थापना की।

उनके चिंतन से कहीं भी यह आभास नहीं होता है कि यह उपदेश या बातें किसी एक विशेष वर्ग के लिए कही गई है बल्कि समस्त मानव समुदाय और विश्व स्तर पर सभी धर्मावलम्बियों को प्रभावित किया है।

यही कारण है कि आज उनके अनुयायियों की संख्या लाखों में है। जिस समय आपका आविर्भाव हुआ देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था। अंध विश्वास, कुरीति, सामाजिक रूढ़िवादिता, धर्मभीरूता, कुप्रथा, सामाजिक प्रतिबंध, छुआछूत जैसी सामाजिक अव्यवस्थायें हावी थीं। ऐसे वक्त में गुरुजी ने जो उपदेश दिया उसे सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण रखकर आज के परिप्रेक्ष्य में रखकर विचार करें तो हम पाते हैं कि उनके उपदेश या कथन सभी वर्गो के लिए मान्य है | गुरु ने कहा है कि – न कोई जन्मना ऊँचा, न नीचा है, विभाजन कर्म की रेखा, उठाती है, गिराती है, विभाजित आचरण लेखा, नहीं वह नीच हो सकता, कि जिसका कर्म ऊँचा है, बड़ा वह हो नहीं सकता, कि जिसका कर्म नीचा है, हमारे वेद, श्रुतियाँ, उपनिषद, सिद्धांत शास्त्रों के, यही कहते, इसी में मर्म जीवन का समूचा है।

अर्थात न कोई जन्म से ऊँचा है और न कोई नीचा है। मुझे कहीं भी असमानता की स्थिति नजर नहीं आती और असमानता हो भी तो किस बात पर। मानव-मानव सब एक है फिर भेदभाव कैसा किन्तु, नासमझी की भावना ही हमें एक दूसरे से अलग करती है। हम विभाजन किसलिए करते हैं। एक ऊँचा एक नीचा यही प्रवृत्ति सबसे घातक होती है। हमारा कर्म, हमारी सोच ही हमें छोटा-बड़ा बनाती है। वही इंसान को ऊँचा उठाती है और वही नीचे गिराती है। स्पष्ट यह कि हमारा आचरण कैसा हो।

वे कहते हैं कि एक उच्च कुल का व्यक्ति यदि हत्या जैसे अपराध करता है वहीं एक निम्न कुल का व्यक्ति भी यह अपराध करता है तो दोनों एक ही स्तर के हुए। इनमें न कोई छोटा न बड़ा। दोनों का ही कुल एक हुआ और वह कुल है हत्यारे का। यहाँ जाति पीछे छूट जाती है और कर्म सामने आता है। सो बड़ा कर्म करने वाला ऊँचा और छोटा कर्म करने वाला नीचा, वह कैसे हो सकता है ? समानता का सिद्धांत होना चाहिए। यही हमारे वेद समस्त शास्त्र और श्रुतियाँ भी कहते हैं और इसी में जीवन का मर्म छिपा हुआ है।

गुरु घासीदास जी के द्वारा वाचिक परम्परा के माध्यम से प्राणित ‘‘26’’ उपदेशों को आत्मसात कर, उन्हीं के बताये मार्ग पर चलकर सभी वर्गों, सभी धर्मों के साथ समन्वय स्थापित किया जा सकता है। व्यक्तिगत रूप से मैं गुरु घासीदास जी द्वारा मानव जाति के लिए दिये गये संदेशों से, उपदेशों से, उनके समग्र व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित हूँ। कौन कहता है कि वे एक वर्ग विशेष के हैं। वर्ग विशेष के वे तब थे जब उन्होंने समाज में व्याप्त भ्रान्तियों को दूर करने का बीड़ा उठाया था। आज तो वे समस्त वर्ग के आराध्य के रूप में पूजे जाते हैं । हमारा वर्तमान परिदृष्य यह कहता है कि आज समाज में ऊँच-नीच, छोटे-बड़े की बात बेमानी है। मनुष्य को आत्मा के शुद्धिकरण के लिए सोचना चाहिए न कि केवल तन के शुद्धिकरण की। यदि तन के शुद्धिकरण से ही समानता की बात होती तो पवित्र नदियों के तट पर बसने वालों में कहीं भी छोटा-बड़ा या ऊँच-नीच का वर्ग विष्लेषण नहीं होता।

हमारी नदियों ने, हमारे पर्यावरण ने, हमारी प्रकृति ने हमें आपस में प्रेम, भाईचारा का पाठ पढ़ाया है। तभी तो महात्मा बुद्ध को बोधिवृक्ष के नीचे बैठकर ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। उसी तरह सतगुरु घासीदास बाबा जी ने भी तेंदू वृक्ष के नीचे बैठकर ज्ञान की प्राप्ति की थी, ज्ञान का बोध किया था।

अतः इन संत महात्माओं ने हमें यह भी बोध कराया है कि हमें पर्यावरण के प्रति भी सजग रहना है यह कि पेड़ हमारें लिए कितना उपयोगी है। बिना पेड़-पौधों के प्राकृतिक वातावरण नष्ट होता है और हमारा पर्यावरणीय अस्तित्व संकट में पड़ जाता है।

अतः हमें सतगुरु बाबा घासीदास जी के द्वारा बताए गए ज्ञान के मार्ग पर चलकर उनके उपदेशों को आत्मसात करके चलने का प्रयास करना चाहिए। क्योंकि सतनाम ‘‘ओंकार’’ का ही उपलक्षक है और परमतत्व का प्रतीक है।

    प्रस्तुति

शकुंतला तरार
रायपुर

निर्मल माणिक/ प्रधान संपादक मोबाइल:- / अशरफी लाल सोनी 9827167176

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

*एनटीपीसी ने 85.5 गीगावाट से अधिक की कमर्शियल क्षमता हासिल की*

Wed Dec 17 , 2025
नई दिल्ली, 17 दिसंबर 2025: एनटीपीसी ने आज गुजरात और राजस्थान में अपनी सब्सिडियरी कंपनियों के विभिन्न सोलर प्रोजेक्ट्स के माध्यम से 359.58 मेगावाट की नई कमर्शियल क्षमता जुड़ने की घोषणा की है। इसके साथ ही एनटीपीसी ग्रुप की कुल कमर्शियल क्षमता 85.5 गीगावाट से अधिक हो गई है। एनटीपीसी […]

You May Like

Breaking News