
हरितालिका गणेश चतुर्थी पर्व जो भगवती पार्वती की आराधना का सौभाग्य व्रत, जो केवल महिलाओं के लिए है। यह भाद्रपद शुक्ल तृतीया को प्रायः निर्जल व्रत है। रात्रि में शिव-गौरी की पूजा और जागरण होता है, दूसरे दिन प्रातः विसर्जन के पश्चात् अन्न-जल ग्रहण किया जाता है। अलियो (सखियों) के द्वारा हरित (अपहृत) होकर पार्वती ने एक कंदरा में इस व्रत का पालन किया था, इसलिये इस व्रत का नाम हरितालिका प्रसिद्ध हो गया।
शिवपुराण के अनुसार एक बार बाहर द्वार पर नंदी को बैठाकर पार्वती स्नान कर रही थी, कि शिव बाहर से टहलते हुए आए और भीतर जाने लगे। नन्दी ने उन्हें बहुत रोका-टोका पर वे किसके रोके रूकने वाले थे ? वे नन्दी को डांट-फटकार कर भीतर चले ही गए। पार्वती उन्हें देखकर बहुत लजा गई। तब उनकी सखी जया-विजया ने उनसे कहा – ‘‘शिवजी के तो सैकड़ों सेवक हैं, आपके कोई नहीं है। आप भी एक सेवक बना खड़ा कीजिये।’’ कहने भर की देर थी, अपने शरीर से छुड़ाया हुआ उबटन लेकर भाद्रपद कृष्णा चतुर्थी के दिन उन्होंने एक सुन्दर पुरूष बना खड़ा करके उसे जिला दिया और कहा – ‘‘तुम मेरे बेटे हो, सारे गुण तुममें आ भरेंगे और कोई माई का लाल तुम्हें जीत नहीं पावेगा।’’ यह कहकर उन्होंने उसे गोद में उठा बैठाया और कहा – ‘‘आज से तुम मेरे द्वारपाल हो गए। मुझसे बिना पूछे कोई भीतर न आने पाये चाहे वह कोई भी क्यों न हो।’’
यह कहकर पार्वती ने उसे एक डण्डा उठा कर थमाया, और वे द्वार पर जा डटे। पार्वती भीतर निश्चिंत होकर स्नान करने लगी। इसी बीच शिव बाहर से आकर भीतर जाने लगे तब गणेश उन्हें भी रोकने लगे। यह देखकर शिव को बड़ा अचम्भा हुआ कि यह कौन नया पहरेदार आ धमका है? उन्होंने उसी ताव में कहा -’’तू कौन मुझे भीतर जाने से रोकने वाला है?’’
पर गणेश किसकी सुनने वाले थे? वे द्वार पर डण्डा अड़ाकर जा खड़े हुए। शिव ने यह देखकर अपने गणों से कहा – ‘‘हटाओ इसे, यह कौन यहां आ खड़ा हुआ है?’’ गणों ने उससे जाकर पूछा तो वे बोले- ‘‘मैं पार्वती माता का बेटा हूं। बहुत चीचपड़ की तो यह डण्डा होगा और तुम्हारा सिर। गणों ने शिवजी से ज्यों का त्यों जा कहा। उस पर शिव जी ने बिगड़कर कहा ‘‘हटाओ इसे यहां से। कोई भी हो।’’
गणेश और शिव जी के गणों में गरमा गरमी, कहा-सुनी होने लगी। विजया ने पार्वती से सब कांड जा सुनाया। पार्वती ने गणेश के लिए एक पगड़ी भी निकाल भेजी। अब तो गणेश और शेर हो गए। उन्होंने सबको ललकारा- ‘‘मेरी माता ने मुझे यहां द्वार पर भेज खड़ा किया है। देखता हूं किसकी मां ने दूध पिलाया है जो भीतर चला आवे।’’
शिवजी के गणों में और गणेश में ठॉय ठॉय होने लगी। लड़ाई छिड़ गई। गणेश जी ने देखते देखते सबको मार बिछाया। तब शंकर केे पुकारने पर देवता भी गणेश से लड़ने आ पहुंचे। विजया से यह बात सुनकर पार्वती लाल हो उठी और उन्होंने दो शक्तियां उत्पन्न करके गणेश जी की सहायता के लिए भेजी। उनका आना था कि देवताओं के चलाए हुए सोर अस्त्र शस़्त्र उन शक्तियों के मुख में जा जा समाने लगे। आए तो विष्णु भी पर वे सब समझकर चुपके से खिसक गए। तब भगवान शंकर अपने आप आ डटे और उन्होंने अपने त्रिशुल से गणेश का सिर काट गिराया।
काटने को तो उन्होंने गणेश का सिर काट गिराया, पर उनका जी भीतर ही भीतर कचोटने लगा और वे बहुत दुखी मन से एक ओर जा बैठे। यह समाचार सुनकर पार्वती की त्योरियां चढ़ गई- ‘‘ मेरे बालक को कोई ऐसे मार डाले ? हूं ……? उन्होंने देखते देखते सैकड़ों शक्तियां उपजा खड़ी की और कहा – ‘‘देखती क्या हो? जाओ, जो सामने मिले उसे डकार जाओ, चबा जाओ, खा जाओ, निगल जाओ।’’ कहने भर की देर थी। वे मुह बांए, जीभ लपलपाएं दौड़ पड़ी और जो मिला उसे पकड़ पकड़ कर खाने लगी।
अब तो चारों ओर हाहाकार मच गया। पार्वती भी आठ भुजा वाली बनकर सिंह पर चढ़ी आकर दहाड़ उठी। यह देखकर सब देवता नारद को लेकर जगन्माता पार्वती के पास पहुंचकर लगे गिड़गिडज्ञ़ाने। पार्वती ने कहा – ‘‘जब तक मेरा बेटा जीकर उठ खड़ा नहीं होता, तब तक मैं किसी की एक नहीं सुनने वाली हूं। तुमने समझ क्या रखा है?’’ सबने उनका यह संदेश शिव जो जा सुनाया। शिव ने उनसे कहा – ‘‘ऐसा करो कि उत्तर की ओर बढ़े चले जाओ और जो पहले मिले उसी का सिर काट लाकर इसके धड़ पर जोड़ दो क्योंकि इसका अपना सिर तो मेरे त्रिशुल से भस्म हो चुका है।’’
ब्रम्हाण्ड पुराण के अनुसार ऋषि पंचमी का व्रत भाद्रपद शुक्ल पंचमी के दिन मनाया जाता है। यह सभी वर्णो के लिए है, किन्तु महिलाएं वर्ष भर की अपवित्रता एवं अस्पृश्यता के प्रायश्चित हेतु करती है। नदी में स्नान के बाद सप्तर्षियों की कुश से बनी प्रतिभाओं की पूजा पंचामृत से करके पंचोपचार विधि से पालन किया जाता है। मरीचि, अत्रि, अंगिरा, पुलस्त्य, पुलह, कतु और वशिष्ठ ये सात ऋषि माने गये हैं।

निर्मल माणिक/ प्रधान संपादक मोबाइल:- / अशरफी लाल सोनी 9827167176
Mon Aug 25 , 2025
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