मोबाइल,लैपटॉप,टैबलेट के लगातार उपयोग से युवाओं की आंखों पर पड़ रहा असर, अन्य अब बच्चों, युवाओं को साल में कम से कम एक बार आंखों की जांच जरूरी 

शहर के प्रमुख नेत्र विशेषज्ञों की राय

 बिलासपुर । पिछले कुछ वर्षों से बच्चों और युवाओं को चश्मे की जरूरत ज्यादा पड़ने लगी है । दरअसल ,स्मार्टफोन ,लैपटॉप और टैबलेट के अत्यधिक उपयोग के कारण बच्चों और युवाओं की आंखों पर बहुत बुरा असर पड़ रहा है इसलिए आंखों की देखभाल आवश्यक हो गया है। बच्चों और युवाओं को अब साल में कम से कम एक बार अपनी आंखों की जांच अवश्य करनी चाहिए।किशोर अवस्था के लिए आंखों की देखभाल अपनी दृष्टि की शक्ति को समझें।

 शहर के नेत्र रोग विशेषज्ञों डा एल सी मढ़रिया, डॉ  संदीप तिवारी , डा संजय मेहता, डा देवेश खांडे और डॉ सौरभ लूथरा ने संयुक्त रूप से प्रेस वार्ता में बताया कि किशोरावस्था में – केरियर दोस्त और डिजिटल दुनिया में सक्रिय और आपकी आंखे इस सबका प्रवेशद्वार है। उन्हें स्वस्थ रखना उतना ही जरूरी है जितना कि अपने फोन को चार्ज रखना। डिजिटल उपकरणों के बढ़ते इस्तेमाल को देखते हुए भी आंखों की देखभाल अब एक विकल्प नहीं, बल्कि एक जरूरत है।

1. विजिटल आई स्ट्रेन से लड़ें

डिजिटल स्क्रीन (स्मार्टफोन, लैपटॉप, टैबलेट) से निकलने वाली नीली रोशनी और लगातार देखना आपकी आंखों की मांसपेशियों पर जबरदस्त तनाव डालता है, जिसे डिजिटल आई स्ट्रेन कहते हैं। 20-20-20 नियम ही कुंजी है। हर 20 मिनट बाच, कम से कम 20 सेकंड के लिए 20 फीट दूर किसी बस्तु को देखें। यह नाँखों की फोकस करने वाली मांसपेशियों को आराम देता है।

जागरूक होकर पलकें झपकाएं : स्क्रीन देखते समय हम सामान्य से 60% कम पलके झपकाते हैं, जिससे आँखें सूख जाती हैं। हर वेक में जानबूझकर 10 बार पलकें झपकाएं ताकि आंखों में नमी बनी रहे।

 स्क्रीन आपकी आंखों के स्तर से थोड़ी नीचे (लगभग 20 डिग्री) होनी चाहिए और आपसे कम से कम 25 इंच (एक हाथ की दूरी) दूर होनी चाहिए। लैपटॉप को ऊपर उठाने के लिए स्टैंड का इस्तेमाल करें।

ब्राइटनेस सेटिंग: स्क्रीन की ब्राइटनेस को कमरे की रोशनी के साथ संतुलित रखें। इसे ‘ऑटो-ब्राइटनेस’ मोड पर सेट करना सबसे अच्छा है।

 उन्होंने बताया प्राकृतिक धूप में समय बिताना मायोपिया (निकट दृष्टि दोष) के बढ़ते खतरे को कम करने का सबसे प्रभावी तरीका है ।

 पराबैगनी सुरक्षा को गंभीरता से लेंः

 धूप में बाहर निकलते समय हमेशा 100% सुरक्षा वाले धूप के चश्मे पहनें। सूरज की किरणें कॉर्निया और लेंस को स्थायी नुकसान पहुंचा सकती हैं, जिससे बुढ़ापे में मोतियाबिंद का खतरा बढ़ जाता

 टोपी का उपयोगः टोपी या कैप, विशेष रूप से दोपहर के समय, 50% तक यू वी एक्सपोजर को कम कर सकती है।

. पोषणः आंखों के लिए सुपरफूड्स

आपकी डाइट सीधे तौर पर आपकी आंखों के स्वास्थ्य को प्रभावित करती है। कुछ पोषक तत्व मैक्यूलर (रेटिना का केंद्र) को स्वस्थ रखने के लिए आवश्यक हैं।

ल्यूटिन और जियाजेंथिन ये ‘आँखों के विटामिन’ रेटिना को नीली रोशनी से बचाने वाले फ़िल्टर की तरह काम करते हैं। इसके लिए पालक, केल और अंडे खाएं।

ओमेगा-3 फैटी एसिडः ये आंखों के सूखेपन को कम करने और रेटिना के स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण हैं। अखरोट, चिया सीड्स, अलसी के बीज और फैटी फिश (जैसे सैल्मन) का सेवन करें।

विटामिन सीऔर ई: ये एंटीऑक्सीडेंट आंखों को ऑक्सीडेटिव तनाव से बचाते हैं। खट्टे फल (संतरा, नींबू), स्ट्रॉबेरी गाजर, और बादाम अपनी डाइट में शामिल करें

शरीर में पर्याप्त पानी (हाइड्रेशन) आंखों के आंसू के उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण है, जो सूखापन और जलन को रोकता है।

 स्वच्छता और संपर्क लेंस सुरक्षा

आंखों के संक्रमण से बचाव के लिए स्वच्छता पहली प्राथमिकता है।आंखें रगड़ने से बचें। खुजली होने पर आंखों को रगड़ने से कॉर्निया को नुकसान हो सकता है और संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। कॉन्टैक्ट लेंस में लापरवाही न करें! लेंस पहनने वाले टीनएजर्स को सख्त सफाई नियमों का पालन करना चाहिए। लेंस को गंदे हाथों से छूना, या लेंस पहनकर सोना, गंभीर आई इन्फेक्शन (जैसे कॉर्नियल अल्सर) का कारण बन सकता है, जिससे स्थायी दृष्टि हानि हो सकती है।

 नियमित जांच और सुरक्षा

नियमित नेत्र जांच केवल नंबर बदलने के लिए नहीं होती, बल्कि यह आंखों की गंभीर बीमारियों का पता लगाने का सबसे अच्छा तरीका है। भले ही आपको चश्मे की जरूरत न हो, लेकिन हर साल एक नेत्र विशेषज्ञ से विस्तृत जांच कराएं। कई समस्याएं (जैसे ग्लूकोमा) शुरु‌आत में कोई लक्षण नहीं दिखाती हैं।किसी भी लक्षण को नज़रअंदाज़ न करें: लगातार सिरदर्द, आंखों में लाली, बहुत ज्यादा पानी आना, या अचानक धुंधला दिखना- ये सव चेतावनी के संकेत हैं जिन पर तुरंत डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए।

क्रिकेट, बास्केटबॉल, फुटबॉल या अन्य तेज़ गति वाले खेलों में आंखों की चोट का खतरा होता है। ऐसे खेलों में हमेशा उचित फिटिंग वाले सुरक्षात्मक चश्मे का उपयोग करें।

पालकों के लिए निर्देश: 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को मोबाइल तथा लेपटॉप देखने ना दें। 16 वर्ष तक के बच्चों को केवल 2-3 घंटे ही स्क्रीन एक्सपोज़र हो। सामूहिक तौर पर टी वी 4 वर्ष की आयु से 1 घंटा देखा जा सकेगा। प्रतिवर्ष आधा घंटा समय बढ़ाते जाये। सोशल मीडिया 16 वर्ष के पहले देखने की अनुमति न हो।

*शिक्षकों के लिए आवश्यक सुझाव :- किसी भी छात्र / छात्रा को प्रोजेक्ट वर्क या होमवर्क मोबाइल पर अथवा डिजिटली न देवें। ऐसे में किशोरावस्था में ही बच्चों को मोबाइल चलाने लत लग सकती है।

प्रत्येक स्कूली छात्र / छात्रा को क्लासरूम में रोटेशन से अग्रिम पंक्ति से पीछे की पंक्ति में बिठाया जाना अनिवार्य है, ताकि मायोपिया रोग का शीघ्र निदान स्वयं शिक्षक ही क्लासरूम में कर सकते है। फिर नेत्रविशेषज्ञ द्वारा अभिभावक की उपस्थिति में नेत्र परीक्षण कर चश्मे प्रदान किये जाते है।

इन दिशानिर्देशों का पालन करके टीनएजर्स अपनी आंखों को स्वस्थ, सुरक्षित और उनकी दृष्टि की शक्ति को आने वाले वर्षों तक बरकरार रख सकते हैं।

निर्मल माणिक/ प्रधान संपादक मोबाइल:- / अशरफी लाल सोनी 9827167176

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