प्रयागराज में भगदड़ विपक्ष की साजिश तो कांग्रेस में भगदड़ किसकी साजिश ?

बिलासपुर । कांग्रेस में इस समय पूरे प्रदेश में भगदड़ का माहौल है। यो कहें कि कांग्रेस संधिकाल के दौर से गुजर रहा है ।नगरीय निकाय चुनाव में सुनियोजित ढंग से नाम वापस लेकर भाजपा प्रत्याशियों को निर्विरोध जिताया जा रहा है।ऐसा क्यों हो रहा और कांग्रेस के नेता इस साजिश को आखिर रोक क्यों पा रहे? कहीं  कांग्रेस के नेता भी इस साजिश में शामिल तो नहीं है? इस तरह के अनेक सवाल लोगों के मन में उठ रहे । एक बड़ा सवाल यह भी है कि प्रयागराज कुंभ में जो भगदड़ मची उसको उप्र के सत्तारूढ़ दल के कुछ नेता विपक्ष की साजिश बता रहे थे तो फिर कांग्रेस में भगदड़ किसकी साजिश हो सकती है ?

राजनीति में सब कुछ जायज और सब कुछ संभव है । प्रलोभन और दलबदल से सत्ता प्राप्ति का शार्ट कट रास्ता स्थायी नहीं होता ।फजीहत होती है वह अलग । याद करें छग के प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने भाजपा के दर्जन भर विधायकों को तोड़कर कांग्रेस में शामिल किया था उसके बाद अंतागढ़ के कांग्रेस प्रत्याशी मंतूराम पवार से नामांकन वापस करवा भाजपा प्रत्याशी की जीत का रास्ता आसान किया गया था ।उसके बाद क्या हुआ ?कांग्रेस में शामिल कराए गए भाजपा के 12 विधायकों को विधानसभा  चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी बनाया गया लेकिन रायगढ़ से सिर्फ शकराजीत नायक जीत पाए । अजीत जोगी का कांग्रेस से निलंबन तक हुआ । अंतागढ़ उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी पवार से नाम वापसी लेकर अजीत जोगी और अमित जोगी की बरसो तक आलोचना होती रही ।

आज कांग्रेस में जो भगदड़ मची है और उसमें जो लोग शामिल है उनकी छवि आम जनता में सत्ता लोलुप और दलबदलु तथा बिक जाने वाले नेता के रूप में हो रही है उनका राजनैतिक भविष्य अंधकार मय है। आखिर फेयर चुनाव क्यों नहीं होते ? कांग्रेस हो या भाजपा सत्ता प्राप्ति के बाद अहंकार आ ही जाता है और यह स्वाभाविक प्रक्रिया है । हर बार सत्तारूढ़ दल पर प्रलोभन और खरीद फरोख्त के आरोप लगते रहे है लेकिन यह काम अब बहुत ही सुनियोजित तरीके से होने लगा है । मतदाताओं को प्रलोभन तो समझ में आता है लेकिन टिकट से वंचित दावेदारों को पार्टी में शामिल कराने और चुनाव लड़ रहे प्रत्याशियों को नामांकन वापस ले लेने का जो दौर चल रहा है वह बहुत खतरनाक है ।

प्रत्याशी का फैसला जनता को करने देने में डर लगने लगा है इसलिए प्रत्याशी को फैसले के लिए जनता तक जाने से पहले ही नामांकन वापस करवाने का खेल शुरू हो गया है यह खतरनाक है ।जनता की सहमति और बिना चुनाव कराए ही पार्टी विशेष के प्रत्याशी को जितवाने सभी प्रकार के उपाय किए जा रहे लेकिन यह भी जान लेना चाहिए कि कथित निर्विरोध जीत का लबादा ओढ़ने वाला प्रत्याशी जनता के द्वारा जिताया हुआ नहीं है वह स्वयंभू  जीता हुआ प्रत्याशी है। जिस क्षेत्र का वह कथित निर्विरोध प्रत्याशी है ,जनता के प्रति उसकी कोई रिस्पॉन्सबिलिटी नहीं है क्योंकि जनता ने उसे नहीं जिताया है ।यह एक तरह से जनता को उसके अधिकार (जो उसे संविधान ने दे रखा है ) से वंचित करना भी है। 

नगरीय निकायों के चुनाव की घोषणा के बाद कांग्रेस में मची भगदड़ को कांग्रेस के नेता रोक क्यों नहीं पा रहे ?सिर्फ आरोप प्रत्यारोप में उलझकर वे वक्त जाया ही कर रहे है।यह भी कटु सत्य है नौकरशाह और प्रशासन उनकी एक भी नहीं सुनेगा यह सहज और सामान्य प्रक्रिया है ।प्रशासन पर तोहमत लगाना अपनी कमजोरी को छुपाना है । प्रशासन के हाथ भी बंधे रहते है । जिसका शासन उसका प्रशासन यह बात तो जनता भी आसानी से समझने लगी है इसलिए जिस भी पार्टी प्रभावित हो रही है और जो भी पार्टी के लोग मेंढक की तरह उछलकर प्रलोभन या अन्य कारणों से अपनी ही पार्टी की छीछालेदर करने में आमदा है ऐसी पार्टी के लोगों के समक्ष अब नगरीय निकाय चुनाव में मेहनत करने और जनता के पास जाने के सिवाय और कोई चारा नहीं बचा है ।

और हां अभी तक जो भी हुआ वह चुनाव का पहला चरण था ,दूसरा और तीसरा चरण अभी बाकी है । दूसरा चरण वोटिंग का और तीसरा चरण मतगणना का है । बाकी दो चरणों में एलर्ट नहीं रहे तो पीड़ित पार्टियों का भगवान ही रक्षा करे ।

निर्मल माणिक/ प्रधान संपादक ,मोबाइल:- 9827167176

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