*किसकी होगी हार,किसकी होगी नैया पार? शहर सरकार में किसका होगा कब्जा ,48 घंटे बाद हो जाएगा स्पष्ट क्या महापौर और पार्षदों का बहुमत एक ही पार्टी को मिल पाएगा?*


बिलासपुर। अगले 48 घंटे के बाद किसकी बनेगी शहर सरकार और किस पार्टी का महापौर होगा,रुझान आ जाएगा । बड़ा प्रश्न यह कि क्या महापौर का पद और पार्षदों का बहुमत एक ही पार्टी को मिल पाएगा ? यदि कोई चमत्कार हुआ तो ऐसा संभव नहीं हो पाएगा । महापौर और पार्षदों का बहुमत अलग अलग पार्टी का हुआ तो खिचड़ी शहर सरकार की नौबत आ जाएगी ।

1नगर निगम का चुनाव भाजपा और कांग्रेस ने अपने अपने हिसाब से लड़ा है और दोनों को उम्मीद है कि निगम में उनकी ही पार्टी का कब्जा होगा लेकिन कम मतदान ने दोनों दलों को परेशान कर दिया है । बात करें सत्तारूढ़ दल भाजपा की तो टिकट वितरण से लेकर चुनावी प्रबंधन तक सुनियोजित रणनीति के तहत काम किया । भाजपा नेताओं को महतारी वंदन से लाभान्वित महिलाओं के वोट पर पूरा भरोसा था तभी महापौर प्रत्याशी भी महिला को बनाया गया ।यहां तक कि चुनाव के दौरान भी महतारी वंदन के फॉर्म भरवाए गए । लाभान्वित महिलाओं की वार्डो में बैठक बुलाकर अधिकार पूर्वक उन्हें भाजपा को वोट देने कहा गया लेकिन महिलाओं ने भाजपा को गच्चा दे दिया । महिला वोटरों की जितनी संख्या है उससे आधा महिला वोटरों ने वोट ही नहीं डाला। अब आधी आबादी महिलाओं में से आधी संख्या ने वोट डाला तो उसमे से कितनी महिलाओं ने भाजपा के पक्ष में वोट डाला यह नतीजे से स्पष्ट हो जाएगा। भाजपा का चुनावी घोषणा पत्र”अटल विश्वास” पर वोटरों ने कितना विश्वास किया इसका भी खुलासा हो जाएगा। महापौर प्रत्याशी घोषित होने के पहले भाजपा के आधा दर्जन से ज्यादा दावेदार थे जिनमें से कई को पार्षद टिकट से संतोष करना पड़ा ।ये दावेदार वार्डो में महापौर प्रत्याशी के लिए कितने शिद्दत से वोट मांगे इसकी भी समीक्षा भाजपा चुनाव परिणाम आने के बाद करेगी ये तय है।
: अब बात करें कांग्रेस की तो महापौर प्रत्याशी से लेकर अधिकांश पार्षद प्रत्याशी का चुनावी प्रबंधन बेतरतीब रहा ।भाजपा की खामियों को उजागर करने में पता नहीं क्यों कांग्रेसी घबराते रहे इनसे अच्छा तो महापौर के बसपा प्रत्याशी थे जिसने डंके की चोट पर भाजपा महापौर प्रत्याशी की जाति प्रमाणपत्र को लेकर हाईकोर्ट तक पहुंच गए । हाईकोर्ट से चाहे जो भी आदेश आए लेकिन बसपा प्रत्याशी की चुनौती से भाजपा नेताओं में खलबली तो मची । कांग्रेस प्रत्याशी पता नहीं क्यों यह कदम क्यों नहीं उठा पाया ।रायपुर वाले रिश्तेदारों को चुनावी प्रबंधन की जिम्मेदारी सौंपकर कांग्रेस महापौर प्रत्याशी ने सब कुछ ठीक मान लिया था लेकिन अंदरखाने में कांग्रेस प्रबंधन को लेकर कार्यकर्ता नाखुश थे ।निगम चुनाव में प्रायः सभी प्रत्याशियों ने गरीब और मध्यमवर्गीय मतदाताओं को अपनी ओर करने खूब पैसे और सामान दिए । यहां तक कि मतदान केंद्रों से बाहर भी प्रत्याशी के समर्थक वोटरों को रुपए देते रहे उसके बाद भी 51 फीसदी वोट पड़ना यह बताता है कि शहर के मतदाता ज्यादातर प्रत्याशियों को पसंद नहीं थे इसलिए उन्होंने वोट नहीं डालना बेहतर समझा ।अब 15 फरवरी को वोटरों ने किसको पसंद नहीं किया और किसे हरवाया यह स्पष्ट हो जाएगा।

निर्मल माणिक/ प्रधान संपादक ,मोबाइल:- 9827167176

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