राष्ट्र गीत “वंदे मातरम” पर आखिर अनावश्यक विवाद क्यों?

        *वंदे मातरम*जब देश भीतरी और बाहरी मोर्चों पर कई समस्याओं से गुजर रहा है और लोग इस उम्मीद में हैं कि लगभग हर रोज़ चुनावी मंचों से बड़ी-बड़ी बातें करने वाले प्रधानमंत्री मोदी इनका समाधान करेंगे, तब श्री मोदी इतिहास को उलट-पुलट कर नया विवाद खड़ा करने की कोशिश में हैं। आपातकाल, सरदार पटेल को प्रधानमंत्री बनने से रोकना, शास्त्री जी की हत्या, कश्मीर का हिस्सा पाकिस्तान को देना, देश का विभाजन करना, इन सब पर विवाद खड़ा करने और फिर प्रायोजित चर्चाओं से भाजपा का मन नहीं भरा तो अब राष्ट्रगीत वंदे मातरम पर सोची-समझी रणनीति के तहत बेजा विवाद खड़ा किया जा रहा है। आजादी के बाद से अब तक कभी वंदेमातरम पर किसी सरकार ने राजनैतिक फायदा उठाने के लिए अकारण विवाद को तूल दिया हो, याद नहीं पड़ता। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ऐसा ही कर रहे हैं। इसके दो कारण हो सकते हैं, एक तो पं. नेहरू को बदनाम करने के सारे पैंतरे बेअसर साबित हुए, तो अब उन पर देश विभाजन का इल्जाम लगाया जा रहा है। दूसरा संघ ने आजादी की लड़ाई में हिस्सा नहीं लिया, बल्कि कई मौकों पर अंग्रेजों का साथ दिया तो अब उस गद्दारी को छिपाने की यह कोशिश है। और इसका तीसरा कारण भी है कि जब वास्तविक समस्याओं का समाधान करने की काबिलियत न हो, तो आभासी मुद्दे खड़े कर ध्यान भटकाया जाए। लिहाजा अब वंदे मातरम संघ और मोदी के निशाने पर है।
: गौरतलब है कि शुक्रवार को ‘वंदे मातरम’ गीत के 150 वर्ष पूरे होने का आयोजन किया गया, जिसमें श्री मोदी ने कहा कि, ‘दुर्भाग्य से, 1937 में मूल ‘वंदे मातरम’ गीत से महत्वपूर्ण पद हटा दिए गए थे। ‘वंदे मातरम’ को टुकड़ों में तोड़ दिया गया। इसने विभाजन के बीज भी बो दिए। वही विभाजनकारी विचारधारा आज भी राष्ट्र के लिए एक चुनौती बनी हुई है।’ श्री मोदी ने कहा-‘1937 में नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस ने गीत के महत्वपूर्ण पदों को जानबूझ कर हटा दिया था, जिससे गीत की ‘आत्मा’ को अलग कर दिया गया। लेकिन बड़ी चालाकी से नरेन्द्र मोदी ये बात छिपा गए कि इस फैसले में नेहरूजी के साथ नेताजी बोस, मौलाना आज़ाद, आचार्य नरेंद्र देव इन सबकी भी सहमति थी। बल्कि रवीन्द्रनाथ टैगोर भी इस बात को मानते थे कि पूरी वंदे मातरम कविता अगर अपने संदर्भके साथ पढ़ी जाए तो इसकी व्याख्या इस तरह से हो सकती है कि मुसलमानों की भावना को चोट पहुंचे। इतिहास में यह बात दर्ज है कि कांग्रेस ने इस गीत के पहले दो अंतरों को राष्ट्रीय गीत के रूप में 1937 के फैजपुर अधिवेशन में मान्यता दी और 24 जनवरी 1950 को डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने संविधान सभा के अध्यक्ष के तौर पर जनगणमन को राष्ट्रगान घोषित करते हुए प्रथम दो पदों वाले वंदेमातरम को राष्ट्रगीत का सम्मान देने की घोषणा की थी। श्यामाप्रसाद मुखर्जी भी इसी संविधानसभा के सदस्य थे और डॉ. अंबेडकर भी। तो क्या नरेन्द्र मोदी पं. नेहरू के साथ-साथ डा. राजेन्द्र प्रसाद, डा. अंबेडकर, रवीन्द्रनाथ टैगोर सभी को गलत बता रहे हैं।

नरेन्द्र मोदी इस तथ्य को क्यों नहीं बता रहे कि बंकिमचंद्र चटर्जी ने इस गीत को पहली बार जब लिखा था, तो उसमें शुरुआती दो अंतरे ही थे। लेकिन जब उन्होंने आनंदमठ उपन्यास लिखा तो उसकी जरूरत के अनुरूप इसमें इस गीत को डाला और आगे के अंतरे जोड़े। जिसगं देवी दुर्गा की स्तुति है। यह उपन्यास बंगाल में अकाल के बाद अंग्रेजों की क्रूर कर नीति के विरोध में संन्यासियों के विद्रोह की पृष्ठभूमि में लिखा गया है, जिसमें मुसलमानों को भी अत्याचारी बताया गया है।
याद रहे कि तत्कालीन बंगाल में अंग्रेजों से पहले नवाबों का शासन था, इसलिए इसमें मुसलमानों को खलनायक की तरह दिखाया गया है। बंकिमंचद्र महान लेखक थे, लेकिन वे ब्रिटिश भारतीय सिविल सेवा के अधिकारी भी थे। ब्रिटिश सरकार ने उन्हें राय बहादुर और कम्पेनियन ऑफ द ऑर्डर ऑफ द इंडियन एम्पायर की उपाधियां दीं। लिहाजा उनका झुकाव अगर अंग्रेजों की तरफ और मुसलमानों के खिलाफ था, तो इसमें आश्चर्य नहीं। लेकिन वह तत्कालीन युग की बात थी। इसका ये अर्थ कतई नहीं है कि समूचा बंगाल मुसलमानों के खिलाफ था। अगर ऐसा होता तो 1905 में बंग-भंग का विरोध नहीं होता। तब खुद बंग-भंग के खिलाफ रवींद्रनाथ टैगोर ने इस गीत को गाते हुए जुलूसों का खुद नेतृत्व किया। यह गीत पूरे बंगाल का गीत बन गया। और अब पूरे देश का गीत है।

अगर वंदेमातरम का विरोध कांग्रेस ने या पं. नेहरू ने किया होता तो इसे राष्ट्रगीत के रूप में अपनाया ही क्यों जाता, यह बात सहज बुद्धि के लोग तो समझ जाएंगे, लेकिन जिनका मकसद केवल दुष्प्रचार करना हो, वे जानबूझ कर तथ्यों की तोड़-मरोड़ करेंगे। कायदे से नरेन्द्र मोदी को अपने पितृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से सवाल करना चाहिए कि क्यों संघ की शाखाओं में, आयोजनों में आज तक वंदेमातरम का गान नहीं हुआ। कांग्रेस ने तो इसे स्वीकार किया, लेकिन संघ ने नमस्ते सदा वत्सले को अपनी प्रार्थना क्यों बनाया। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने लिखा भी है कि, ‘यह विडंबना है कि संघ और भाजपा, जो आज राष्ट्रवाद के स्व-घोषित संरक्षक हैं, उन्होंने कभी भी अपने शाखाओं या कार्यालयों में ‘वंदे मातरम’ नहीं गाया। इसके बजाय, वे ‘नमस्ते सदा वत्सले’ गाते रहे हैं, एक ऐसा गीत जो राष्ट्र का नहीं, बल्कि उनके संगठन का महिमामंडन करता है।

दरअसल बिहार चुनाव में भाजपा फंसी हुई है। ऊपर से राहुल गांधी ने वोट चोरी के जो नए सबूत सामने रखे हैं, उनका कोई जवाब श्री मोदी को नहीं सूझ रहा है। फिर अगले साल पश्चिम बंगाल में भी विधानसभा चुनाव हैं। पिछले चुनाव में तो मोदीजी ने रवीन्द्रनाथ ठाकुर जैसी लंबी सफेद दाढ़ी रखकर बंगाली जनता को बरगलाने की लेकिन उसमें कामयाबी नहीं मिली। अब वंदेमातरम और बंकिम चंद्र चटर्जी के जरिए पहले ही माहौल बनाया जा रहा है। हालांकि इसमें भाजपा का और नुकसान हो सकता है, यह उन्हें समझना चाहिए।

(“देशबंधु” से साभार)

निर्मल माणिक/ प्रधान संपादक मोबाइल:- / अशरफी लाल सोनी 9827167176

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