
7 मई से पहले शायद ही किसी ने कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह का नाम सुना होगा।लेकिन पाकिस्तान से युद्ध के उन्माद के बीच पूरे देश और दुनिया ने उन दोनों युवा सैन्य अधिकारियों को देखा। विदेश सचिव विक्रम मिसरी के साथ इन दोनों लड़कियों को मीडिया के सामने देख मुझे भी थोड़ा आश्चर्य हुआ!मन में यह सवाल आया कि ऐसा कैसे?लेकिन युद्ध के समय सवाल नहीं पूछे जाते,यह सोच कर आगे बढ़ गया।
सब जानते हैं कि पहलगाम में आतंकियों द्वारा 26 मासूम लोगों की नृशंस हत्या का बदला लेने के लिए भारत की सरकार ने सेना को खुली छूट दी थी।उसी सेना ने पाक में स्थित आतंकी ठिकानों को ध्वस्त करने के लिए ऑपरेशन “सिंदूर” लॉन्च किया।उस ऑपरेशन की सफलता के लिए सेना को पूरे देश ने सैल्यूट किया।हमेशा करेगा।
लेकिन जब मिसरी के साथ सोफिया कुरैशी और व्योमिका सिंह को देखा तो यह समझते देर नहीं लगी कि सरकार की असली मंशा क्या है।उन्हें ऑपरेशन सिंदूर का मोहरा क्यों बनाया गया है।इनके जरिए कौन सा लक्ष्य साधा जा रहा है।
नवभारत टाइम्स में नौकरी के दौरान रक्षा मंत्रालय द्वारा प्रायोजित युद्ध संवाददाता का प्रशिक्षण लिया था।कॉलेज में सैन्यविज्ञान की पढ़ाई की थी। एन सी सी का कैडेट भी रहा हूं।इसलिए थोड़ा बहुत सेना को समझता हूं।शायद यह देश के इतिहास में पहली बार होगा(वैसे तो बहुत कुछ पहली बार ही हो रहा है) कि जब युद्ध की मीडिया ब्रीफिंग के लिए सेना के मध्यक्रम की महिला अधिकारियों को चुना गया।जिस तरह के भावनात्मक उद्वेग से देश गुजर रहा है और जिस स्तर पर युद्ध शुरू हुआ था,उसे देखते हुए कम से कम सेना के डायरेक्टर जनरल मिलिट्री ऑपरेशंस (डी जी एम ओ) को तो मीडिया के सामने आना चाहिए था।हालांकि अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा युद्ध विराम का ऐलान किए जाने के बाद वह आए भी।लेकिन ऑपरेशन “सिंदूर” से जुड़ा था इसलिए दोनों महिला अफसर मीडिया में सुर्खियां बनी रहीं।रैंक को एक बार छोड़ भी दें तो जिस तरह अफसरों का चुनाव किया गया वह भी सरकार की मंशा जता रहा था।यह साफ है कि सोफिया कुरैशी और व्योमिका सिंह को सामने लाया जाना सुनियोजित योजना का हिस्सा था।
दोनों ही लड़कियां शानदार अफसर हैं।दोनों अपने काम में उत्कृष्ट हैं।अपनी अपनी इकाइयों में उनकी अलग पहचान है।सोफिया जहां पैदल सेना (आर्मी) की सिगनल कोर से जुड़ी हैं वहीं व्योमिका वायु सेना की एक कुशल हेलीकॉप्टर पायलट हैं।उनका अनुभव बहुत विशाल है।दोनों ने ही ऑपरेशन सिंदूर में हिस्सा नहीं लिया।उनकी भूमिका सिर्फ मीडिया ब्रीफिंग तक ही सीमित थी।वैसे उन दोनों ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि एक दिन यह काम भी उनकी ड्यूटी का हिस्सा बनेगा।
सोफिया और व्योमिका ने अपना काम पूरी कुशलता से किया भी।उन्होंने कैमरे के सामने लिखित वक्तव्य पढ़े।विक्रम मिसरी ने भी अपनी भूमिका निभाई।मीडिया के सवालों के उत्तर उन्हें देने नहीं थे।वैसे भी अब सवाल पूछने वाला मीडिया अब बचा ही कहां है!लेकिन तीन दिन में पूरी दुनिया ने देश की इन वीर बेटियों को देख लिया।उन्हें आधा अधूरा जान भी लिया।आधा अधूरा इसलिए क्योंकि उनकी जानकारी देने वाले मीडिया को खुद उनके बारे में पूरी जानकारी नहीं थी।
तीन दिन तक सोफिया और व्योमिका ऑपरेशन सिंदूर की जानकारी मीडिया को देती रहीं।चौथे दिन अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अचानक भारत पाक के बीच युद्ध विराम का ऐलान कर दिया।उसके बाद सेना और वायुसेना के वरिष्ठ अफसर मीडिया के सामने आए।उस दिन भी रक्षा मंत्री या सेनाध्यक्ष सामने नहीं आए।खैर वह एक अलग विषय है।
सोफिया और व्योमिका को सरकार ने सोच समझ कर ऑपरेशन सिंदूर से जोड़ा था।पहलगाम में आतंकियों द्वारा उजाड़े गए सुहाग के बदले के लिए किए गए ऑपरेशन सिंदूर में उनके चेहरे आगे करके सरकार जो हासिल करना चाहती थी। उसने कर लिया।वो तो बुरा हो ट्रंप का जिन्होंने खुद पंच बनकर युद्ध विराम का ऐलान कर दिया।वह भी एक बार नहीं दो दो बार।ट्रंप ने अपने दोस्त नरेंद्र को यह मौका ही नहीं दिया कि वह देश को इस युद्ध के बारे में बता सकें।सबसे बुरी बात तो यह रही कि दोस्त के देश को संबोधन करने के दो घंटे पहले ही ट्रंप ने अमेरिकी मीडिया को बुला कर कह दिया कि मैंने पाकिस्तान और इंडिया से साफ कह दिया कि लड़ाई बंद करो नहीं तो मैं तुम दोनों के साथ ट्रेड बंद कर दूंगा।इसके बाद भी उनके दोस्त ने 22 मिनट तक देश के लोगों के सामने युद्ध विजय एक अपना रमतुला बजाया।यही उनकी विशेषज्ञता है।
युद्ध में नफा नुकसान तो होता ही है,उस पर अभी बात कैसे हो सकती है।वह तो देश द्रोह की श्रेणी में आएगा।पहले मीडिया से एक उम्मीद रहती थी।वह सच जनता तक लाता था।इस बार या यूं कहें कि अब इस देश का मीडिया सेना से आगे आगे चल रहा था।देश की सरकार और सेना अभी तक यह कह रहे हैं कि हमारा ऑपरेशन आतंकियों के खिलाफ था।हमने सिर्फ आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया है।लेकिन भारत का मीडिया एक रात में आधे पाकिस्तान पर कब्जा कर चुका था।युद्धविराम के बाद मीडिया के सामने आए आला अफसर भी इस मुद्दे पर मौन ही रहे।
उधर सोफिया और व्योमिका को इस युद्ध से सीधा जोड़ने की सरकार की मंशा को मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार के एक वरिष्ठ मंत्री ने अगले ही दिन उजागर कर दिया।आदिवासी राजपरिवार के सदस्य मंत्री महोदय ने एक सार्वजनिक सभा में मोदी महिमा का बखान करते हुए जो कुछ कहा उसे मैं यहां नहीं लिखूंगा।हां उन्होंने यह बता दिया कि कर्नल सोफिया कुरैशी को मोदी जी ने सिर्फ इसलिए चुना कि वे एक मुसलमान हैं!मंत्री महोदय मोदी वंदना के अतिरेक में सोफिया को पाकिस्तानियों की बहन बताना भी नहीं भूले।वीर रस से भरपूर अपने भाषण में उन्होंने इसे मोदी के शानदार राजनीतिक कौशल का उम्दा उदाहरण भी बताया।पूरे दंभ के साथ उन्होंने ऑपरेशन सिंदूर के निहितार्थ बता दिए।उधर आज से शुरू हुई बीजेपी की तिरंगा और सिंदूर यात्रा ने इसे प्रमाणित भी किया।
उधर मंत्री के इस बयान पर जहां प्रधानमंत्री और बीजेपी अध्यक्ष ने अपनी आंखें बंद रखी वही मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के दो माननीय जजों ने उसका स्वतः संज्ञान ले लिया।उन्होंने मंत्री के बयान को देश द्रोह की श्रेणी में रखते हुए उनके खिलाफ तत्काल मुकदमा दर्ज किए जाने का निर्देश राज्य के पुलिस प्रमुख को दिया।14 मई को देर रात इंदौर जिले के एक थाने में मंत्री महोदय के खिलाफ मुकदमा दर्ज हो गया है।15 मई को कोर्ट फिर इस पर सुनवाई करेगा।लेकिन मंत्री ने अभी इस्तीफा नहीं दिया है।यह अलग बात है कि अब वे कर्नल सोफिया कुरैशी को अपनी बहन बताते घूम रहे हैं।
क्या यह देश और उसके कर्णधार कभी यह सोचेंगे कि एक महिला सैन्य अधिकारी किस मानसिक यंत्रणा से गुजर रही होगी? अपनी योग्यता और कौशल के बल पर उसने यह मुकाम हासिल किया।जिस परिवार में वह जन्मी उसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि है।लेकिन उसे सिर्फ एक धर्म के खांचे में फिट कर दिया गया। उसे एक व्यक्ति के राजनैतिक कौशल का प्रमाण निरूपित कर दिया गया।उसकी मेहनत,उसकी योग्यता,देश के प्रति उसकी निष्ठा सब पर पानी फेर दिया गया।उस वीरांगना पर क्या बीत रही होगी!सेना की बर्दी की मर्यादा में बंधी भारत की वह बेटी अपना दर्द भी नहीं उजागर कर सकती है।
लेकिन दूसरी ओर पूरी बेशर्मी से श्रेय लिया जा रहा है।दिया जा रहा है।महिमामंडन किया जा रहा है।
आज है कोई जो सामने आकर कहे सोफिया और व्योमिका दोनों ही देश की बेटियां हैं।एक सिक्के के दो पहलू!सोफिया के प्रति जो सोच बनाई गई है वह घृणित और निंदनीय है।इसके लिए हम शर्मिंदा हैं।हो सकता है कि मध्यप्रदेश के मंत्री को हटा दिया जाए।लेकिन उससे क्या सोफिया की पीड़ा कम हो पाएगी?
अरुण दीक्षित
15 मई 2025
निर्मल माणिक/ प्रधान संपादक ,मोबाइल:- 9827167176
Fri May 16 , 2025
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